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धुरि सृष्टि की poem by snehpremchand

सृष्टि की तुम धुरि हो नारी, और हो जीवन का आधार। सुर ,लय और ताल हैं तुझसे, है तुझसे ही ये सुंदर संसार।। ममता के फ्रेम में सौहार्द की, प्यारी मोहिनी सी मूरत हो तुम। स्नेह के मंदिर में विनम्रता की  सबसे प्यारी न्यारी सूरत हो तुम।। और अधिक तो क्या कहना, हो जीवन का सुंदरतम अलंकार। किसी श्रेष्ठ धनुर्धर के तरकश में ज्यूँ, होती है तीर की सुंदर टनकार।। खुद खुदा के खजाने की  तूँ अनमोल धरोहर, हैं कुदरत के हम शुक्रगुज़ार। सुर,सरगम,संगीत है नारी, जान गई ये दुनिया सारी। सोच कर्म परिणाम की त्रिवेणी बहा, नई ही परिभाषा को देती हो आकार।। सृष्टि की तुम धुरि हो नारी, और हो जीवन का आधार। एक अनहद नाद हो ऐसा सृष्टि का, सुन रहा जिसे सारा संसार। विहंगम सोच और ऊँचे सपने, हो रहा निस दिन जिसमे परिष्कार। गीता भी हो रामायण भी हो, हो तुम्ही बाइबल और तुम्ही कुरान।। शिक्षा भी तुम संस्कार भी तुम, उत्सव उल्लासों की तुम्ही से शान। पहन परिधान उन्नत सोच का, निभाती हो सारे उत्तम किरदार। प्रेम प्रीत की डोर तुम्ही से, हो तुम जीवन का मधुर श्रृंगार।। कोयल की कूक सी मीठी हो तुम, सपनों को देना आता आकार। सही सोच को सही समय...