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वो बंदा ही क्या(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वो बंदा ही क्या,  जो बारिश में नहाना न जाने, वो बंदा ही क्या,  घने जाडे में भी अंगीठी जलाना न जाने, वो बंदा ही क्या,  जो शादी में ढोल की आवाज़ पर भी उठना न जाने, वो बंदा ही क्या, जो अपने मेहमानों की ज़रूरतों को न जाने, वो बंदा ही क्या,  जो सर्दियों में कड़ी धूप का आनंद लेना न जाने, वो बंदा ही क्या,  जो किसी के काम आना ही न जाने, वो बंदा ही क्या,  जो संगीत ही सुनना न जाने, वो बंदा ही क्या,  जो रोज़ ही जल्दी उठ कर बैठ जाए, वो बंदा ही क्या,  जो माँ बाप को तवज्जो न दे वो बंदा ही क्या,  जिसे माँ बाप से बात करने में संकोच हो, जो माँ बाप उसको बोलना सिखाते हैं,उन्ही से बात करने से जो कतराए, वो बंदा ही क्या,  जो आंखों से नही दिल से अँधा हो।। वो बंदा ही क्या, जिसे मातृ भूमि,मातृभाषा से प्रेम न हो।। वो बंदा ही क्या, जो बातों की गांठ बांध रिश्तों को ही स्वाहा कर ले।।