फिर तिरंगे में लिपट लाल पांच मां के वतन लौट कर आए हैं। क्यों इस नाज़ुक घड़ी में भी छाए आतंक के साए हैं। लम्बी नींद में सो गए हैं पांचों आज नयन सजल हो आए हैं। मातृभूमि के ऋण चुका कर ये शहीद कहलाए हैं। करबद्ध दे रहे हैं उन्हें श्रद्धांजलि हम, अपनी जान पर खेलकर ये हमे महफ़ूज़ कर पाए हैं।। स्नेहप्रेमचन्द