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तूं व्याकरण जिंदगी की(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तूं ही गद्य तूं हीं पद्य  तूं ही व्याकरण जिंदगी की तूं ही स्वर,तूं ही व्यंजन, तूं भंवरे की मधुर सी गुंजन, तूं ही शब्दावली, तूं ही भावार्थ है जीवन की।। तूं ही संज्ञा,तूं हीं सर्वनाम, तूं ही विशेषण जिंदगी का।। तूं ही परिधि,तूं हीं व्यास, आम नहीं,तूं सच बड़ी खास।। तूं ही वेद,तूं ही मंत्र,  तूं ही गीता का ज्ञान री। कहती थी मैं उपदेशन तुझे, हो सबको इसका भान री।। अल्फाजों से नहीं मेरी दोस्ती, बता देती वरना,  तूं थी कितनी महान री।। नहीं सामर्थ्य मुझ में इतना, कर सकूं जो तेरा गुणगान री। *तूं सागर की गहराई* *तूं बसंत में आम की अमराई* *संगीत में जैसे शहनाई* धरूं क्या क्या तेरा नाम री?????

स्नेह सानिध्य