क्या लिखूं तेरे बारे में मां???? मां, तूने ही मुझे है लिख डाला। सीमित उपलब्ध संसाधनों में भी, बड़े प्रेम से था ,मुझ को पाला।। अमृत सदा पिलाया हमको, खुद पी गई तूं गरल की हाला।। जग से जाकर भी जो जेहन से कभी नहीं जाती है। हमे हमारी खूबियों और खामियों दोनो संग अपनाती है। कोई और नहीं,मेरे प्यारे बंधु, वो मां कहलाती है।। जिंदगी की किताब के हर पन्ने पर मां मुझे तो, तूं ही तूं नजर आती है। समा गई है जेहन में ऐसे,जैसे एक सांस आती है एक सांस जाती है।। हमारी सोच की सरहद जहां तक जाती है। उससे भी बहुत आगे मां तूं साफ साफ नजर आती है।। मतभेद बेशक हो जाए, पर मनभेद ना करना कभी मां से, वरना पूरी कायनात खफा हो जाती है।। मां तूं ही परिधि तूं ही व्यास आम नहीं मां थी तूं बड़ी खास मां जा कर भी कहीं नहीं जाती, करती है मां कण कण में वास क्या भूलूं क्या याद करूं मां???? खुद से पहले सदा खिलाया मुझे निवाला। क्या लिखूं तेरे बारे मां, मां तूने ही मुझे है लिख डाला।। वैसे तो कुछ भी करके हम कभी मातृ ऋण से ऊऋण नहीं हो पाएंगे। फिर भी भूलें ना अपने कर्तव्य कर्मों ...