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एक पल का भी नहीं भरोसा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक पल का भी नहीं भरोसा तेरा बंदे फिर क्यों तेरा मेरा का तराना है जाने कब आ जाए शाम जीवन की जाने कौन सा सवेरा बिन तेरे आना है ओ माटी के पुतले! एक दिन माटी में ही मिल जाना है विरहनी आत्मा का मिलन हो जाएगा प्रीतम परमात्मा से, चार दिनों की जिंदगी,फिर तूं टुर जाना है सब यहीं रह जाएंगे कुटुंब कबीले बंद मुट्ठी आया था जग में, खाली हाथ पसारे जाना है आज तेरी कल मेरी है बारी दस्तूर ए आवागमन पुराना है नई कोंपले आती हैं जग में पीले पतों को समय संग झड़ जाना है कभी धूप कभी छांव है जिंदगी खुशी गम का लगा रहता आना जाना है