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कैसे कह दूं

चंद लफ्जों में कैसे कह दूं??? मां जाई तेरी अद्भुत कहानी अनुकरणीय तेरी सोच,कर्म,परिणाम की त्रिवेणी अनुकरणीय तेरा व्यवहार,नज़रिया और बोली यूं हीं तो नहीं होती दुनिया किसी की दीवानी जब जब भी खोलती हूं घुंघट अतीत का जेहन में घूमती हैं तेरी निशानी खुद मझधार में होकर भी सह का पता भला बताता है कौन?? पर तूं बताती थी अक्सर,होती है सोच सोच हैरानी किसी अभाव का तुझ पर प्रभाव ना था बल्कि अभाव से तो निखरा ऐसा अदभुत स्वरूप तेरा,तेरी पेशानी पर कभी ना दिखी कोई परेशानी *जैसी राम जी की मर्जी* कहती थी सदा ऐसे पारदर्शी तो ऐसी जैसे होता है पानी छोटों में छोटो सी,बड़ों में बड़ी सी,तेरे जाने से तो लगता है *लाभ गगन का धरा की हानि* काल के कपाल पर चिन्हित हो गई सदा के लिए तूं ऐसे जैसे राजा के लिए होती है रानी तूं है नहीं,नहीं होता यकीन जिंदगी और कुछ भी नहीं, है सच तेरी मेरी कहानी तूं धार ही नहीं नदिया की तूं तो सागर रही मां जाई हर भोर थी उजली तुझ संग हर शाम लगती थी सुहानी