जाने कहां टूटे रिश्तों के तार??? जब तक तेरे आंगन में थी बाबुल, तब तक ही जाना,क्या होता है लाड मनुहार। कोयल सी चहकती थी, पुष्प सी महकती थी, कितना करते थे बाबुल, तुम मुझ से प्यार।। बात बात पर मेरा मुंह फुलाना, तेरा बार बार वो मुझ को मनाना, मेरी जरा सी चोट पर तेरा वो भाग कर आना, सांझ ढले बाजार ले जाना, कभी पानी पूरी, कभी जलेबी खिलाना, फिर कोई पसंद का खिलौना दिलाना, मेरी हर हसरत को परवान चढ़ाना, तेरा हौले से सिर पर हाथ फिराना, मुझे खुश देख तेरा खुश हो जाना, फिर निशा में तेरा वो कहानी सुनाना, सब एक सपने सा जैसे लेता रहता है आकार। अब कोई पहले सा नहीं करता मनुहार। जब से छूटा बाबुल तेरा आंगन, रूठने से ही मैंने कर दिया इंकार।। अब तो रूठने से पहले ही मानने को रहती हूं तैयार।। अब कोई तुझ सा मनाता भी तो नहीं, जाने कहां टूटे रिश्तों के तार??? तेरे अक्स को खोजती हूं जब भी किसी में, मुझे हो ही नहीं पाते दीदार। मन मसोस कर लेती हूं समझौता, कुछ कर देती हूं दर गुजर, कुछ कर देती हूं दरकिनार।। भली भांति जान गई हूं, कहां टूटे रिश्तों के तार।। किसी भी...