तल्खियां नहीं,लरज लाज़मी है लहजे में, गर रिश्तों में नहीं चाहिए दरार। Faansle आ जाते हैं बिन बुलाए, औपचारिकता रिश्तों में हो जाती है शुमार।। Snehpremchand
बहुत नाजुक से हो गए हैं मरासिम आजकल, पलभर में ही आ जाती है दरार। अल्फ़ाज़ों के हथौड़े से दरक जाते हैं पल भर में ही,कटु वाणी बन जाती है कटा र।। स्नेहप्रेमचन्द