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दिल और नयन poem by snehpremchand

एक दिन दिल ने कहा नयन से*होता हूँ दुखी मैं, बरसती हो तुम,टूटता हूँ मैं, सिसकती हो तुम* शीशा नहीं मैं दिल हूँ प्रिय, जो हो मेरे टूटने की छम से आवाज़। बस तुम ही समझ जाती हो बिन कहे, जान लेती हो कब गिरती है मुझ पर गाज।। है किस जन्म का तेरा मेरा प्रिय,  ये इतना गहरा अगाध सा नाता। मेरी आवाज हो तुम,मेरा साज़ हो तुम, तुम बिन मुझ को कुछ भी कहना नही आता।। मेरे प्रतिबिम्ब को अपने अक्स में उतारना तुम्हे बखूबी आता है। शायद यही कारण होगा प्रिय,जो साथ तेरा मुझे भाता है।। सुन दिल की सच्ची बातें नयन ने भी किए प्रकट निज उदगार। बिन शब्दों के भी सब बयान करने में सक्षम नयन को था दिल से सच्चा प्यार।। तुम मुझसे,मैं तुझसे हूँ साजन, तुम हंसते हो, मैं भी हँस देती हूं। होते हो दुखी जब तुम प्रियतम, लांघ पलकों को आ गालों पर हौले से रो देती हूं। तुम स्पंदन मैं चेतना,तुम अहसास तो मैं वेदना।। फर्क सिर्फ इतना है तुम दिखते नहीं, मैं सबको नज़र आ जाती हूँ। मेरी माँग सजी है तेरे ही रंग से साजन, तेरे गुण मैं निस दिन गाती हूँ।। जब तुम कर देते हो बन्द धड़कना, मैं खुद बन्द हो जाती हूँ। पीड़ा पहुंचाता है जब तुम को कोई, आँसू मे...