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पीहर से

नेहर से जाती हैं बेटियां पर दिलों से कभी नहीं जाती(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**पीहर से जाती हैं बेटियां,  पर दिलों से कभी नहीं जाती**  कौन सी ऐसी भोर सांझ है,  जब वे याद नहीं आती???  कौन कहता है लाडो होती है पराई??  प्रीत तो निस दिन उसकी है गहराती।  दिलो-दिमाग में छा जाती है ऐसे,  जैसे हिना धानी से,  श्यामल हो जाती।। **नेहर से जाती हैं बेटियां,  पर दिलों से कभी नहीं जाती**  पूछता है जब कोई," जन्नत है कहां???  हौले से मुस्कुरा देती हूं मैं और कहती हूं," जन्म लेती है बेटी जहां"  पूछता है जब कोई," कैसा होता है घर में बेटी का होना???  हौले से मुस्कुरा कर कहती हूं मैं, ** बेटी से महकता है घर का हर कोना**  धड़धडाती हुई ट्रेन सा व्यक्तित्व होता है बेटी का और थरथराते हुए पुल से अन्य नाते जाने क्यों बेटी के वजूद के आगे धुंधला से जाते हैं।  हर मंजर मटियाला सा हर भाव खोखला और हर शब्द अर्थहीन सा कर देते हैं। क्या है बेटी???? ** नयन में नूर,हीरो में कोहिनूर है बेटी**  **खुशबू में पराग, संगीत में मधुरतम सा राग है बेटी, ** स्नेह का सतत बहने वाला निर्झर है बेटी**  अनुराग मंडप में अप...