भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण पढ़ मेरी बहना तूं आ जाना मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर तूं बिन दस्तक के आ जाना यूं मत आना कि आना चाहिए था जब दिल में उठें हिलोरें, तभी मेरे शहर का टिकट कटाना कितने हक से लड़ती थी तुम बचपन में, छीना झपटी में भी स्नेह का बन जाता था फसाना पल भर भी अलग नहीं रहते थे बचपन में, सच में बदल गया है जमाना बेशक कह नहीं पाता मैं पर जब जब आती है तूं चला जाता हूं अतीत में मैं भी लगता है भला सा तेरा मेरी चौखट पर आना याद आता है मुझे जब जिंदगी का परिचय हो रहा था अनुभूतियों से,संज्ञा सर्वनाम विशेषण का जिंदगी गा रही थी गाना माना राहें बदल गई हैं मां जाई तेरी मेरी अब,पर एक ही परिवेश एक ही परवरिश में शुरू हुआ था जिंदगी का तराना मां की महक आती है मां जाई तुझ में देख मुझे कभी तूं भूल न जाना बेशक मसरूफ हो गए हैं हम अपनी अपनी जिंदगी में, पर जब भी मिलती हो,याद आ जाता है वो गुजरा जमाना