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जीवन के सफर में ओ हमसफर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जीवन के सफर में हमसफ़र, देखो सदा ही साथ निभाना। प्रेमडोर न टूटे कभी, इस बंधन को गहरा करते जाना। समय के संग संग ये नाता  और भी गहरा होता जाए। लड़ झगड़ कर भी संग  बस एक दूजे का भाए। खून का तो है नही, बस है ये प्रेम  औऱ विश्वास का नाता अनजान राह के जब मिल जाते हैं मुसाफिर, उनको निभाना बखूबी आता 36 बरस बिताए हैं संग एक दूजे के, हर धूप छांव में डटा रहा ये नाता आगे भी 36 बरस और संग संग बिताना,आज दिल सब का यही गुनगुनाता