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तरंगित है सरगम,व्यंजित हैं सुर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

तरंगित है सरगम,व्यंजित हैं सुर **स्वर सम्राज्ञी** देखो कितनी शोभायमान।। **स्वर कोकिला** हैं अंकित हिसार की दीवारों पर,सच में हम हो गए धनवान।। *धन्य है कला और धन्य है कलाकार* कितनी बड़ी हस्ती को दे गया सुंदर सा आकार।। गायन के नभ को छू लिया लता दीदी ने,जाने ये सारा संसार।।