आज नहीं तो कल, ये जग छोड़ के जाना है। कब समझेगा नादान परिंदे ये देस बेगाना है।। ओ माटी के पुतले, एक दिन माटी में ही मिल जाना है।। ये जग तो है रैन बसेरा, हुई सांझ,फिर जाना है।।। तेरी मेरी सबकी है यही कहानी आवागमन का रिवाज़ पुराना है।।। नई कोंपले खिल जाती हैं पीले पत्तों को झड जाना है।।। स्नेह प्रेमचन्द