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सुकून और बेचैनी

सुकून और बेचैनी जब मिले किसी मोड़ पर,होने लगी दोनों में कुछ ऐसी बात,जिसे सुन कर सब ने सीखा कुछ न कुछ,उनका वार्तालाप औरों के लिए था सौगात,बेचैनी ने कहा,कैसे इतने शांत और मोहक हो तुम,आज बतलाओ मुझे इसका राज,मैं रहता हूँ सच्चे दिलों में,जहां लोभ,मोह,क्रोध और हिंसा का नही होता वास,जहां दर्द उधारे लेते हैं कुछ लोग,जहां सुख दुःख सांझे हो जाते हैं, जहां एक रोटी और चार जने हो,पर टुकड़े कर चार वो खाते हैं, माँ के आंचल में हूँ,पिता के प्रेम में हूँ,सच्ची आस्था में हूँ,मैं लेकर नही देकर खुश हो जाता हूँ,संचय में नही विश्वास है मेरा,में बाँट कर हर्षित हो जाता हूँ,मैं के स्थान पर हम को में अपने जीवन में ख़ास बनाता हूँ,यही राज है मेरे अस्तित्व का,आज ये सच्चाई मै आप सब को बताता हूँ,बेचैनी सिर्फ और सिर्फ सुकून का मुँह तकती रह गयी।।

परिवार thought by snehpremchand

समर्पण औऱ प्रेम दोनो ही हैं सगे भाई। दोनों संग संग ही रहते हैं,कुटिया अपनी दोनों ने ही एक बनाई। ममता माँ है करुणा बहन है और सुसंस्कार से है पिता का नाता। कितना प्यारा परिवार है इनका, इनसे जुड़ना सब को भाता।।