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कोथली पर तो है उसका अधिकार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हक उसका भी बनता है, बेशक वो करती है इनकार दौलत और जागीर नहीं,  पर कोथली पर तो हो अधिकार एक ही अँगने में खेल कूद कर  बड़े होते हैं बहन भाई जाने कितने अनुभव अहसासों से करते हैं वे प्रेमसगाई लड़ते भी हैं झगड़ते भी हैं, स्नेह भी होता है तो  होती भी है  तकरार  पर गांठ नहीं होती कोई चित में,  खुल जाते हैं जल्द ही सुलह द्वार गुड़ियों से खेलने वाली लाडो  जाने कब बड़ी हो जाती है, माँ बाबुल के हिवड़े में लगा  स्नेहपौध, वो चुपके से विदा हो जाती है विदाई संग बदल जाते हैं उसके सारे के सारे अधिकार अपने ही घर मेहमान हो जाती है बेटी, यही भारतीय शिक्षा संस्कार माँ जाया भी एक कोने में  हौले से नीर बहाता है, ले जाते हैं पालकी बहना की जब चार कहार, भीतर से टूट सा जाता है समय संग सब हो जाता है सामान्य,, अक्सर ज़िक्र लाडो का कर जाता है खुशगवार कोठी और जागीर नही, पर कोथली पर तो हो इसका अधिकार कोथली सिर्फ कोथली नही, एक परवाह है, उपहार है कोथली मायके की यादों का सुंदर सा श्रृंगार है कोथली एक रिमाइंडर है  इस बात का, बेशक कितना ही समय हो जाए लाडो,प्यारा है ज...

हक उसका भी बनता है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

हक उसका भी बनता है, बेशक वो करती है इनकार। दौलत और जागीर नहीं,  पर कोथली पर तो हो अधिकार। एक ही अँगने में खेल कूद कर  बड़े होते हैं बहन भाई। जाने कितने अनुभव अहसासों से करते हैं वे प्रेमसगाई।। गुड़ियों से खेलने वाली लाडो जाने कब बड़ी हो जाती है, माँ बाबुल के हिवड़े में लगा कर स्नेहपौध, वो चुपके से विदा हो जाती है।। माँ का जाया भी एक कोने में  हौले से नीर बहाता है। ले जाते हैं पालकी बहना की जब चार कहार, भी तर से दरक  सा जाता है।। समय संग सब हो जाता है सामान्य,, अक्सर ज़िक्र लाडो का कर जाता है खुशगवार कोठी और जागीर नही, पर कोथली पर तो हो इसका अधिकार।। **कोथली सिर्फ कोथली नही, एक परवाह है** **कोथली अपनत्व की हांडी में स्नेह का साग है** **कोथली अनुराग के मंडप में लगाव का अनुष्ठान है** **अपनत्व का राग है,प्रेम का सुंदर सॉज है** **गर्माहट है रिश्तों की,लगाव है उस अँगने का,जिसे छोड़ लाडो बसाती है नया बसेरा, **एक खास अहसास है कि समझना न पराई बिटिया,है ये घर आज भी तेरा।। **एक मोहर है प्रेम संबंधों पर,जो रिश्तों को फिर से ताजा कर जाती है, सावन के इस महीने में,मयूरों की प...