*धरा ने ओढ़ी धानी चुनरिया हुआ नील गगन का और विस्तार* *आया बसंत देखो झूम के ऐसे प्रकृति ने किया हो 16 श्रृंगार* *मदनोत्सव* कहें या कहें *विद्या जयंती* है शुभ मुहूर्त अति पावन त्यौहार प्रकृति का उत्सव सा लागे, कहे कालिदास का *ऋतु संहार* *धरा ने ओढ़ी धानी चुनरिया हुआ नील गगन का और विस्तार* *माघ शुक्ल पंचमी से हो कर आरंभ,हर लेता मन के समस्त विकार* *नवजीवन, नव यौवन, मस्ती,मादकता से हो जाता जन-जन को प्यार* *धरा ने ओढ़ी धानी चुनरिया हुआ नील गगन का और विस्तार* *सरसों के फूलों का समंदर गुलमोहर के लाल पीले से फूल* *रंगों का ऐसा मोहन नजारा सब गम इंसान जाता है भूल* *मधुमास लगे धरा पर ऐसा, कण कण ने जैसे किया श्रृंगार* *धरा ने ओढ़ी धानी चुनरिया हुआ नील गगन का और विस्तार* *उत्साह,जोश,उमंग,उल्लास लक्ष्य पाने की होती आस* *मस्ती भरा अलौकिक पर्व ये महिमा जाने सारा संसार* *आया बसंत देखो झूम के ऐसे किया प्रकृति ने 16 श्रृंगार* *संवे...