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हर मंजर

मंजर

Thought on mother by sneh premchand मंज़र

हर मंज़र धुन्दला जाता है, माँ आँखों में आ जाता है पानी। क्या भूलूँ क्या याद करूँ मैं, हैं जेहन में तेरी अगणित निशानी।। ज़िन्दगी और कुछ भी तो नहीं, है सच में बस तेरी और मेरी कहानी।।        स्नेह प्रेमचंद

मंज़र

हर मंज़र हो जाता है धुंधला जब आंखें दिल की पढ़ लेती है किताब। लब तो ओढ़ लेते हैं खामोशी की चुनरिया,पर आंखें बिनपूछे ही दे देती है जवाब।।