इस जग में मात पिता नहीं मिलते दोबारा। वे प्रेम लुटाते हैं सारे का सारा।। हमारे सपने पूरे करने के लिए, अपनी जरूरतें पूरी करना भी उन्हें होता नहीं गवारा।। मात पिता को जाने किस माटी से, ईश्वर ने होगा संवारा???? हर मोड़ पर संग खड़े होते हैं वे, चाहे बच्चों ने उन्हें हो पुकारा या ना हो पुकारा।। मैंने भगवान को तो नहीं देखा, पर जब जब देखा मात पिता को,लगा, इनसे तो ईश्वर होगा ही नहीं न्यारा।। इस जग में मात पिता नहीं मिलते दोबारा।। हमें हमारे गुण दोषों संग जो बड़े प्रेम से अपनाते हैं। हर गर्म सर्द में हर सुख दुख में जो साथ खड़े नजर आते हैं। हमे जन्म से अपनी मृत्यु तक जो दिल में हमे बसाते हैं। हमारे सपने पूरे करने के लिए, जाने कितने ही समझौते किए जाते हैं।। फिर जिंदगी के रंगमंच से एक दिन हौले से खिसक जाते हैं। कोई और नहीं,मेरे प्यारे बंधु, वे मात पिता कहलाते हैं।। उनसे बेहतर गम गुहार,पुर्सान ए हाल,खैर ख्वाह हो ही नहीं सकता कोई हमारा। इस जग में मात पिता नहीं मिलते दोबारा।। स्नेह प्रेमचंद