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एक ओंकार(( सरलार्थ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक ओंकार सतनाम करता पुरख** ईश्वर का सच्चा नाम है  केवल एक ही ओंकार। इस पूरे ब्रह्मांड का वह निर्माता, वही जगत का पालनहार।। **निरुभउ  निर वैर** न किसी भाव से बंधा है ईश्वर न किसी से उसका होता कभी बैर। न ही करता कभी पक्षपात किसी से सब अपने हैं उसके,नहीं कोई गैर।। **अजूनी हैं गुरु प्रसाद** जन्म मृत्यु से परे है ईश्वर है स्वयं से ही प्रकाशमान। काल से भी मुक्त है ईश्वर, यही स्वरूप ईश्वर का प्रमाण।। प्रकाश उसका,गुरुप्रसाद रूप में, सबमें कण कण में है विद्यमान।।। **जप आदि सच जुगादि सच  है भी सच नानक होसी भी सच** हो बेहतर, गर इसी अमर सत्य का करें हम जाप। युगों युगों से यही सत्य है, भविष्य में भी यही सत्य रहेगा, कह गए गुरु नानक आप।। **सोचें सोचि न होवई जे सोची लख वार चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार**  इससे मन पावन नहीं होता कभी, चाहे स्नान कर लो लाख बार। पावन तो होगा तभी मन, जब होंगे नष्ट मन से सारे विकार।। चुप रहने से नहीं मिलती  मन को शांति, जब तक बाहरी जग से  जुड़े हैं मन के तार। सच्ची शांति तो मन के भीतर ही है, अंतर्मन के गलियारों में कर विचरण पाओ...