कौन सा दिवस है जो बिन महिला के, होगा किसी को भी स्वीकार?? दादी, नानी,मां,बहन, बेटी, पत्नी हर किरदार में, नारी रही दमदार।। मैने ईश्वर को तो नहीं देखा, पर जब जब देखा मां को, हो गए ईश्वर के दीदार। शक्ल देख हरारत पहचान लेती है, पढ़ लेती है नयनों का संसार। बिन कहे ही जान लेती है जो मन की, ऐसी मां से ही पूर्ण होता परिवार।। कौन सा दिवस है जो बिन नारी के, होगा किसी को भी स्वीकार।। पूछता है जब कोई जन्नत है कहां??? हौले से मुस्कुरा देती हूं मैं और याद आ जाती है मां।। मां ही चैन,मां ही सुकून मां ही जन्नत मां ममता का आधार। कौन सा दिवस है जो बिन महिला के,होगा किसी को भी स्वीकार।। घर आंगन दहलीज है बेटी सुर सरगम संगीत है बेटी सौ बात की एक बात है, हर रिश्ते में सबसे अजीज है बेटी।। मां बेटी से प्यारा होता है कोई भी नाता??? नज़र और नजरिए से मुझे तो यही समझ में आता।। बेटी जीवन का है सबसे सुखद आभास सच में बेटी अल्फाज नहीं,बेटी तो है सबसे सुखद अहसास सुनने में बेशक अच्छा लगता है बेटा हुआ है, पर सही मायनो में धनवान हैं वे,हैं बेटी जिनके पास और ...