*ना आदि है ना अंत जिसका* अनंत रूप है उसका, पूरा ही ब्रह्मांड हैं शिव, और शिव हैं निराकार। जानी जिसने शिव महिमा, हो गया,भव सागर से पार।। *कोई लोक नहीं,कोई दिशा नहीं* जहां शिव प्रभाव न हो। जगत का कोई कण नहीं, *जहां भागीरथी का रिसाव ना हो* करते हैं जब *तांडव*भोले, ये वही,महाशिवरात्रि की रात है। चैतन्य जागृति की रात है। धरा गगन ठिठक गए थे, त्रिपुरारी की ऐसी बात है।। किया तांडव, आदियोगी ने ऐसा, * सागर लहरियां* भी हो गई थी खामोश। पूरी *सृष्टि* हुई नतमस्तक आगे जिसके, लाते उत्सव,उल्लास,चेतना,विकास और जोश।। आज ही के दिन, हुआ *सागरमंथन* पी गरल को, नीलकंठ कहलाए। धरा को बचाया विनाश से, भागीरथी को जटाओं में बहा लाए।। *जगत कल्याण* ही जिनकी, सोच और कर्म का हैं आधार। पूरा ही *ब्रह्मांड* हैं शिव, शिव आदियोगी निराकार।। पूरा अस्तित्व ही शिव का है *प्रतीकात्मक* नजर नहीं नजरिए की होती है दरकार। *जटाओं में बहती गंगा* प्रतीक है उस ज्ञान गंगा के प्रवाह की, जो एक पीढ़ी से दूज़ी में स्थानांतरित होती है, बड़ी सोच लबरेज ज्ञान से, सत्कर्मों को देती आकार।। *सिंह चर्म*निर्भयता का प्रतीक है सब ...