कर बद्ध हम कर रहे, परमपिता से यह अरदास। मिले शांति दिव्य दिवंगत आत्मा को, है, प्रार्थना ही हमारा प्रयास।। कब *है* बदल जाता है *था* में, हो ही नहीं पाता अहसास। अपूरणीय क्षति,अविश्वसनीय घटना, रुकी धड़कन और रुके श्वास।। *प्रथम प्रमुख रक्षाध्यक्ष विपिन रावत* नहीं रहे अब धरा के पास।। हुई*हानि धरा की, लाभ गगन का* वे परमपिता के पास कर गए प्रवास।। वतन के रखवाले आज चले गए, हिल सा गया आज आत्मविश्वास।। सतकर्मों के कुरुक्षेत्र में उभरे बन धूमकेतु से,जीवन समर के सच्चे पुरोधा ने आज सच में ही कर लिया प्रवास।। बन *माधव* सा संभाला सैन्य रणनीति को, सूझ बूझ और दूरदर्शिता का हो गया था आभास। हे ईश्वर! ऐसे देशभगतों को देना अब अपने चरणों में निवास।। स्नेह प्रेमचंद