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राधा और कान्हा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कृष्ण और राधा

कृष्ण हैं पुष्प तो राधा सुगंध है।कृष्ण हैं दिल तो राधा है धड़कन।कृष्ण हैं पवन तो राधा गति है।अभिव्यक्ति है कान्हा तो राधा है अहसास।प्रेम है कान्हा तो राधा अनुराग है।कृष्ण है पपीहा तो राधा है कोयल।कृष्ण है अधर तो राधा है बांसुरी,नयन हैं कान्हा तो चितवन है राधा,स्वाद है गोविंद तो भोजन है राधा।गगन है राधा तो सूरज है कान्हा,सुर है मोहन तो सरगम है राधा,सागर है मोहन तो लहर है राधा,नदिया है कान्हा तो बहाव है राधा,मस्तक है कान्हा तो बिंदिया है राधा,मांग है कान्हा तो सिंदूर है राधा,राधा कृष्ण है,कृष्ण ही राधा है।दो नही एक ही है,यही कारण है आज भी राधा का नाम कान्हा से पहले लिया जाता है।राधे कृष्ण,राधे कृष्ण।

वो पुराना घर

पिता

पैमाना(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

पल पल

राधा कृष्ण thought by snehpremchand

कृष्ण हैं पुष्प तो राधा सुगंध है।कृष्ण हैं दिल तो राधा है धड़कन।कृष्ण हैं पवन तो राधा गति है।अभिव्यक्ति है कान्हा तो राधा है अहसास।प्रेम है कान्हा तो राधा अनुराग है।कृष्ण है पपीहा तो राधा है कोयल।कृष्ण है अधर तो राधा है बांसुरी,नयन हैं कान्हा तो चितवन है राधा,स्वाद है गोविंद तो भोजन है राधा।गगन है राधा तो सूरज है कान्हा,सुर है मोहन तो सरगम है राधा,सागर है मोहन तो लहर है राधा,नदिया है कान्हा तो बहाव है राधा,मस्तक है कान्हा तो बिंदिया है राधा,मांग है कान्हा तो सिंदूर है राधा,राधा कृष्ण है,कृष्ण ही राधा है।दो नही एक ही है,यही कारण है आज भी राधा का नाम कान्हा से पहले लिया जाता है।राधे कृष्ण,राधे कृष्ण।

पिता

पिता नींव है तो माँ  इमारत है। पिता वट वृक्ष है तो माँ ठंडी छाया है। पिता इंजन है तो माँ गाड़ी है। पिता पात्र है तो माँ भोजन है।

शब्द परिचय thought by snehpremchand

शब्द संभाले बोलिये, शब्द आपके,आपका परिचय दे जाते हैं। हम कब,किस से,क्यों,क्या बात कर रहे हैं, पहले विचारो,फिर बोलो, बोल कर मत सोचो,सोच कर बोलो। द्रौपदी का एक वक्तव्य अंधे का पुत्र अंधा महाभारत का कारण बना। कुंती ने बिन देखे बिन सोचे लायी गयी भिक्षा को आपस मे बाँट लेने को कह दिया,परिणाम सब जानते हैं। भाषा को विवेक के तराजू से तौलते हुए ही मुखद्वार से बाहर निकालो, हमारा शब्द किसी को खुश न करे कोई बात नही,पर किसी की भावनाओं को आहत करे,बहुत बड़ी बात है।

बचपन thought by snehpremchand

जब भी कहीं, कोई भी, बचपन मुस्कुराता है, मानव का अध्यात्म से परिचय करवाता है।। जब भी कहीं,कोई भी,बचपन खिलखिलाता है, सहजता के पुष्प जिजीविषा के चमन में   बखूबी खिलाता है।। जब भी कहीं,कोई भी,बचपन  ज्ञान की चौखट पर दस्तक दे, पूरे मन से खटखटाता है, जाने कितनी ही असीमित सम्भावनाओं को  आगोश में भर लाता है।। जब भी कहीं,कोई भी, बचपन मायूस और उदास हो कुम्हलाता है , फिजां में भी घुल जाती है घुटन और उदासी, फिर कहीं कोई सुनामी,बाढ़, तूफान या महामारी लाता है।।           स्नेहप्रेमचंद