आज नही कल,भुगतना पड़ता है कर्मो का परिणाम, पहले तोलो फिर बोलो,फिर न कहना क्यों हुए बदनाम।। अहंकार के चूल्हे में प्रतिशोध की ज्वाला को सतत धधकाना नही होता ज़रूरी, किसी के रक्त से केश धो कर,आत्मा की ठंडक हो सकती है पूरी??? सोच कर्म परिणाम का जगत में बड़ा सरल सीधा सा नाता है, यह बात दूसरी है,यह सब को निभाना नही आता है।। काश द्रौपदी थोड़ा सोच कर बोलती अल्फ़ाज़, अंधे का पुत्र अंधा बोल कर बदले की आग का छेड़ दिया था सॉज।। आज भी उस सॉज की सिसकियां फिजां में देती है सुनाई, जब भी ज़मीन दौलत पर होती हैं भाइयों में कहीं भी होती है कोई लड़ाई।। सोच कर बोलो,बोल कर मत सोचो,नही आता तो ज़ुबान को देदो विराम, वरना देर नही लगती,हो जाता है महाभारत का जगह जगह पर घमासान।। आज नही तो कल,भुगतना पड़ता है कर्मों का परिणाम।। काश पांचाली ने कभी कर्ण को स्वयंबर की सभा मे सूतपुत्र कह कर अपमानित न किया होता, इतिहास की धारा ही बदल गई होती,गांधारी का आँचल ममता से यूँ रिक्त कभी न होता।। काश द्रौपदी ने पांच पांच पतियों की पत्नी बनने का स्वीकार न किया होता फरमान, पार्थ की ब्याहता रहती बन पत्नी ही पार्थ की,जीवन उसका भी होता ...