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पाप और पुण्य

माता पिता

आसान क्या मुश्किल क्या(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मां क्या है

सात्विक, राजसी और तामसिक

जिंदगी

क्या है सत्संग

नैतिक जिम्मेदारी

बाल दिवस(Thought by Sneh premchand)

Thought on mother by sneh premchand क्या है मां

प्रश्न हैं हम,तो जवाब है माँ, अक्षर हैं हम तो पूरी किताब है मां, जुगनू हैं हम,तो आफताब है मां, ज्योत्स्ना हैं हम,तो इन्दु है मां, कतरा हैं हम,तो सिंधु है मां, ज़र्रा हैं हम तो कायनात है मां, ईश्वर की सबसे सुंदर सौगात है मां, कश्ती हैं हम तो माझी है मां, मिल जाते हैं रब यहीं,गर राज़ी है मां, पंख हैं हम तो परवाज़ है मां, गीत हैं हम तो साज है मां, कंठ हैं हम तो आवाज़ है मां, नयन हैं हम तो नूर है मां, कदम हैं हम तो सफ़र है मां, मिट्टी हैं हम तो फसल है मां, रियाज़ हैं हम तो ग़ज़ल है मां, प्यास हैं हम तो तृप्ति है माँ, समस्या हैं हम,तो समाधान है माँ, विधि का सबसे सुंदर विधान है मां,  संकोच हैं हम तो सहजता है माँ, धूप हैं हम तो ठंडी छाँव है माँ, पलायन हैं हम तो ज़िम्मेदारी है माँ, ख्वाब हैं हम तो हक़ीक़त है मां, परीक्षा हैं हम तो परिणाम हैं मां, सफर हैं हम तो मंज़िल है मां, हर जख्म का मरहम है मां, मां को परिभाषित करना नहीं आसान। एक अक्षर के छोटे से शब्द मेें सिमटा हुआ है पूरा जहान।। मां खुदा का भेजा हुआ ऐसा फरिश्ता है, जो सब को सहजता से मिल तो जाता है,पर सबको उस फ़रि...

पाप पुण्य thought by sneh premchand

पाप और पुण्य की परिभाषा तो मुझे आज तलक भी समझ नहीं आई।  हम अगर किसी की आंसुओं का कारण बने तो वह पाप है,  पुण्य है वह अगर हमारे कारण मुस्कान किसी के लबों पर हो आई।।         Snehpremchand

प्रेम thought by snehpremchand

प्रेम न जाने जाति मज़हब, जाने प्रेम न कोई दीवार। प्रेम न जाने देस परदेस, प्रेम का बड़ा विहंगम आकार।। प्रेम है गंगा जल सा निर्मल, दिनकर का तेज इसका आधार, इंदु की शीतलता इसमे,  धरा की सहनशीलता करे साकार।। प्रेम है सागर से भी गहरा, भावों को देता आकार।। प्रेम की जब आती है सुनामी, बह जाते है सारे विकार। नही टिक पाता कोई इसके आगे, ईर्ष्या,क्रोध,लालच,अहंकार।। स्वार्थ से परमार्थ की बयार है प्रेम अहम से वयम का शंखनाद है प्रेम जनकल्याण की अखंड ज्योत है प्रेम अंतकरण की शुद्धिकरण है प्रेम सोच का सुधार है प्रेम मन की वीणा का सबसे सुंदर तार है प्रेम गीत संगीत उत्सव उल्लास है प्रेम कान्हा की मुरली,राधा का रास है प्रेम प्रेम को बेशक कई मर्तबा, करना नही आता इज़हार। नयनों से बह जाता है ये, चाहे बेशक लब करते हों इनकार।। प्रेम से सब हो जाता है सुंदर, प्रेम से खुलते हैं करुणा के द्वार। घृणा जब बदलती है प्रेम में, स्वर्ग धरा पर ही लेता है ये उतार।। प्रेम के चूल्हे  में सदा, विशवास का ईंधन जलता है। छप्पन भोग से भी मीठा, साग सौहार्द का पकता है। करुणा का छिड़का जाता है धनिया, मसाला सदभाव का डलता है। ...

सही गलत

गलत का साथ देने वाला सही होते हुए भी गलत हो जाता है और सही का साथ देने वाला गलत होते हुए भी सही,जैसे महाभारत का कर्ण और रामायण का विभीषण।।

लेखन

लेखन वो सच्चा लेखन है, जो हृदय के भाव तारों को झंकृत रखने की क्षमता रखता हो। जिससे व्यक्ति,समाज,परिवार,देस,जग सब लाभान्वित हों, लेखन वह सच्चा लेखन है, जो कुमार्ग से सुमार्ग की ओर ले चले। जो जीवन की सोच बदल दे,सोच से कर्म और कर्म से परिणाम बदल दे। साहित्य की गंगोत्री से, सद्भावना प्रेम और कर्तव्य कर्म की त्रिवेणी निसृत हो।साहित्य समाज का दर्पण होता है,इस उक्ति को चरितार्थ करने में सक्षम हो अच्छा लेखन।।            स्नेहप्रेमचंद