कभी कड़कती ठंड जाड़े की जान की दुश्मन बन जाती है। कभी दहकती भट्ठी सी गरमी सबका हिवड़ा अकुलाती है। कभी बरखा होती है जब अपने पूरे यौवन पर,जलमग्न धरा हो जाती है।किसी भी हालात औऱ किसी भी मौसम में खुशियां भागी सी जाती हैं।इन्ही हालातो में,इन्ही मौसमों में खुशी को हौले हौले आवाज़ लगाओ।वो आएगी,मत चित से अपने चैन चुराओ।।