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लिबास

भोर हुई दोपहर हुई

उच्चारण से आचरण तक((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सोच में

अवमूल्यन नहीं अभिवर्धन (thought by Sneh premchand)

रूप

बयार

परिवर्तन की जब चले बयार

बयार

परिवर्तन की जब चले बयार

मौसम

कभी कड़कती ठंड जाड़े की जान की दुश्मन बन जाती है। कभी दहकती भट्ठी सी गरमी सबका हिवड़ा अकुलाती है। कभी बरखा होती है जब अपने पूरे यौवन पर,जलमग्न धरा हो जाती है।किसी भी हालात औऱ किसी भी मौसम में खुशियां भागी सी जाती हैं।इन्ही हालातो में,इन्ही मौसमों में खुशी को हौले हौले आवाज़ लगाओ।वो आएगी,मत चित से अपने चैन चुराओ।।

सोच बदलेगी,ज़माना बदलेगा

सोच बदलेगी,ज़माना बदलेगा।।

अब एकलव्य नहीं रहे poem by snehpremchand

अभिवर्धन

अवमूल्यन नहीं संस्कारों को हो यथासभंव अभिवर्धन, माना कोई रोक नही सकता, होकर ही रहता है परिवर्तन।।