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माना मझधार में है किश्ती(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

माना मझधार में है किश्ती बस पार लगाने की चाह रहे बाकी माना किसी प्रयास ने सफलता का वरण  न किया हो, पर हौसलों में उड़ान रहे बाकी माना सीधी नहीं राहें जिंदगी की, पर राहों पर चलने का जज्बा रहे बाकी माना हर सपना ना पूरा हो हमारा, पर बड़े बड़े सपने देखने की हसरत रहे बाकी माना संकल्प सिद्धि की चौखट पर न दे पाए हों दस्तक, पर फिर से कोशिश करने का जज्बा रहे बाकी आज गिरे हैं तो भी क्या, बस गिर कर उठना,उठ कर चलने का  जोश रहे बाकी