एक बार फिर आ जाओ ना माधव , जाने कितने ही पार्थ कर रहे पुकार। धर्म स्थापना और जनरक्षा हेतु, लिया बार बार तूने अवतार ।। द्रौपदी की रक्षा हेतु भी आप तत्क्षण ही तो दौड़े आये थे। ज्ञान दिया था धर्मक्षेत्र में गीता का, जब पार्थ रणक्षेत्र में घबराए थे।। अब फिर घबराए हैं बालक तेरे, संशित सशंकित हृदय हैं बेशुमार ।। एक बार फिर आ जाओ ना माधव, जाने कितने ही पार्थ कर रहे पुकार।। वैश्विक महामारी के बादल सर्वत्र ही मंडराए हैं। पर जंग जारी है साझा सी,सब एकजुट हो आए हैं।। बस सबको सन्मति दे देना कान्हा, ज़िन्दगी मौत से न जाए हार। एक तेरा भरोसा है बड़ा भारी, आस्था का होता तुझमे दीदार। एक बार फिर आ जाओ माधव, जाने कितने ही पार्थ कर रहे पुकार।। सुन रहे हो न तालियों,घण्टियों और थालियों की झंकार??? आस का दीया भी जलाया है सबने, अब हरो तमस कर दो आलौकित ये संसार। एक बार फिर आ जाओ ना माधव, जाने कितने ही पार्थ कर रहे पुकार।। न शोर कोई सरहद पर है, न धर्म जाति वर्ग भेद के नगाड़े भर रहे हुंकार। आज खड़े हैं साथ जो सब, हुआ आधा कष्टों का भंडार।। दिशा दिखा दे, राह सुझा दे, करदे न कोई ...