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सबसे बड़ा शांता क्लोज़ (Thought by Sneh premchand)

Thought on father by sneh premchand सूरज

पिता है सूरज के जैसा, है गर्म, मगर है जीवन मे,  उसी से उजाला। हो जाता है जब अस्त ये सूरज, छिन जाता है जैसेे मुख से निवाला।। वो माँ की तरह कभी नही करता इज़हार। पर भीतर से औलाद से उसको भी होता है प्यार। बेशक वो नारियल की तरह बना रहता है, पर उसने भी बड़ी मशक्कत से होता है उनको पाला।।          स्नेह प्रेमचंद

ऊंचाई

एक पिता ही होता है ऐसा

बेहतरीन

बेहतरीन से बेहतरीन करने की चाह में जो सारा जीवन बिताता है, पिता ही होती है वो शख्शियत,वो सदा मुस्कान बच्चों के लबों पर लाता है।

हितैषी

मार्गदर्शक,पथप्रदर्शक, सबसे बड़ा हितैषी पिता ही होता है, बदनसीब है जो मानता नही पिता की,उज्ज्वल भविष्य वो खोता है।।