* अपने पसीने के नमक से हमारा जीवन शहद सा मीठा बनाता है मजदूर* *मेहनत की सड़क पर सतत कर्म का पुल बनाता है मज़दूर* *मेहनत के मंदिर में सदा कर्म की घण्टियाँ बजाता है मज़दूर* *कर्म की कावड़ में परिश्रम का सतत जल भरता है मज़दूर" *खुद भारी बोझा उठा कर औरों को हल्का महसूस करवाता है मजदूर* *जिन महलों में हम चैन से जीते हैं उनको अपने पसीने की बूंदों से निर्मित करता है मज़दूर* *देख कर भी जिसको अनदेखा कर देते हैं हम, सच मे वो होता है मज़दूर* *शाम होने तक काम करते करते थक कर जो हो जाता है चूर* *पूरा दिन अथक परिश्रम के बाद भी अभावग्रस्त सा जीवन बिताता है मजदूर* *औऱ नही,मेरे प्यारे बंधुओं वो होता है एक सच्चा मज़दूर" *मजदूर के श्रम की कीमत कभी चुका नहीं सकते हैं हम* *हो सके तो बस रहे कोशिश इतनी, कम हो जाएं उसके कुछ तो गम* आधारभूत ज़रूरतें हों पूरी उसकी, मयस्सर हों उसे खुशियां, नयन न हों कभी उसके नम स्नेह प्रेमचंद