साहिल से टकरा कर मौज़ें, अपने अस्तित्व का कराती हैं अहसास। केवल तन ही मेरा चाहा तुमने, हो सकी न मन से कभी तेरे पास।। नहीं समझता साहिल मौजों की धड़कन, लौट जाती हैं वे सागर के पास। चाहा था मौजों ने साहिल को ही, सागर को नहीं थी मौजों के आने की आस।। जाने क्या क्या भुला कर मौजों ने, किया साहिल को तहे दिल से प्यार। ज़िद्दी ठूंठ सा अड़ा रहा वो, समझा,जीता, पर गया था हार।। कभी न खुद चल पाया साहिल, किया मौज़ों ने ही आकर श्रृंगार।। मौज़ों के प्यार की गहराई, क्यों साहिल को समझ नहीं आई?? सागर हो जिन मौज़ों का बिछौना, सूखे नाले से झूठी ही आस लगाई।। प्रेमजल की बूंदों से सूखा नाला भी, बन सकता है अति खास। साहिल से टकरा कर मौज़ें अपने ही, अस्तित्व का कराती हैं अहसास।। हर रूप में मौज़ों ने खुद को ढाला, मौज़ों ने सदा साहिल को संभाला। आया जब भी बुरा वक्त कोई, थी मौज़ें हीं, जिन्होंने हल निकाला।। सहज,स्वछंद,मौज़ों की मस्ती साहिल कभी नहीं पाया संभाल जाने कब कब उसने कोसा मौज़ों को खुद की कमियों से था बुरा हाल।। कभी ठहरी सी,कभी धीमी सी चलती, कभी तूफान की सरगम मौज़ों ने गाई। साहिल ऐसा पत्थर दिल था, न की कभी मौज़ों की सुनवाई।।...