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सुन मेरे मीत(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 *सुन मेरे मीत,प्रेम की रीत* सदा निभाई है, सदा निभाना। तूं भी जाने, मैं भी जानूं प्रेम ही,सबसे मधुर तराना।। *सुन मेरे मीत,गाना वो गीत* चले थे साथ मिल कर, चलेंगे साथ मिल कर, बार बार इस को दोहराना।। मेरी सोच की सुई अटक गई है तुम पर,  इस सोच को कभी ना चटखाना।। *सुन मेरे मीत,निभाना सदा प्रीत* आता है मुझे तो बस अब नेह लगाना। लब कभी कुछ न कह पाएं तो, खामोशी की भाषा को पढ़ते जाना।। *सुन मेरे मीत,बड़ी साची तेरी प्रीत* सफर को मंजिल से हसीन बनाना। तूं भी जाने, मैं भी जानूं अहम से वयम का शंख बजाना।।