प्रेम न जाने जाति मज़हब, जाने प्रेम न कोई दीवार। प्रेम न जाने देस परदेस, प्रेम का बड़ा विहंगम आकार।। प्रेम है गंगा जल सा निर्मल, दिनकर का तेज इसका आधार। इंदु की शीतलता इसमे, धरा की सहनशीलता करे साकार।। प्रेम की जब आती है सुनामी, बह जाते है सारे विकार। नही टिक पाता कोई इसके आगे, ईर्ष्या,क्रोध,लालच,अहंकार।। प्रेम को बेशक कई मर्तबा, करना नही आता इज़हार, नयनों से बह जाता है ये, चाहे बेशक लब करते हों इनकार।। प्रेम से सब हो जाता है सुंदर, प्रेम से खुलते हैं करुणा के द्वार। घृणा जब बदलती है प्रेम में, स्वर्ग धरा पर ही लेता है ये उतार।। प्रेम के चूल्हे में सदा, विशवास का ईंधन जलता है। छप्पन भोग से भी मीठा, साग सौहार्द का पकता है।। करुणा का छिड़का जाता है धनिया, मसाला सदभाव का डलता है।। प्रेम है एक मधुर अहसास, प्रेम से सब हो जाता है खास, प्रेम अंधेरे में जैसे प्रकाश, प्रेम है जैसे कुसुम में सुवास, प्रेम है नयनों में ज्योति, प्रेम है माला में मोती, प्रेम है रूह का अनमोल खज़ाना, प्रेम से इंसा बन जाता दीवाना, प्रेम है जीवन का सच्चा सार। प्रेम जीत है,नही है हार।। मीरा ने प्रेम किया कान्हा से विष को अम