प्रेम प्रेम सब करें,प्रेम न जाने कोय प्रेमवृक्ष की नन्ही डाली का आज जन्मदिन होय।। प्रेम ही राज है चारु चितवन का, प्रेम से सब कुछ स्नेहमय सा होय।। प्रेमभरी हर बात लगती है आली कितनी सुहानी। पावनी सी बयार बह जाती सर्वत्र है,सब का सुमन होय।। इंदु चमक रहा अनन्त गगन में, जैसे बड़ा जोश से कोई परी स्वपन हिंडोले में सोय।। माँ सावित्री की कृपा से, यथार्थ सपनो से आलिंगनबद्ध होय।। आनंद प्रकाश पसार रहा है अपनी लम्बी बाहें दुआओं का ही स्थान है आज,सो जाएं सब आहें।। ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय प्रेम से सब हो जाता है सुंदर,सच्चा प्रेमी कभी न रोए।। स्नेह सुमन खिल जाते हैं प्रेम प्रांगण में, चहुं ओर स्नेह मय सब होय।। प्रेम से सुंदर नहीं कोई सुमन है,प्रेम प्रेम घट घट में होय।। स्नेह प्रेमचंद