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फिर से आ जाओ ना माधव(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

फिर से आ जाओ ना माधव फिर कोई दुष्ट दुशासन आया है फिर किसी द्रौपदी का मान हरा है तन मन उद्वेलित हो आया है  उजियारे ने आने से कर दी मनाही,घना अंधेरा छाया है भले ही तान सुनाओ ना किसी बांसुरी की, वक्त सुदर्शन चक्र चलाने का आया है फिर से आ जाओ ना माधव फिर किसी कंस ने आतंक मचाया है कर दो दमन बुराई का अब सिर पर पानी चढ़ आया है फिर से आ जाओ ना माधव फिर कोई नाग कालिया आया है डस  रहा है जो पूरी मानवता को,  विषैला घना अंधेरा छाया है एक नहीं जाने कितने ही अभिमन्यु फंसे हैं चकव्यूह में, आकर माधव उन्हें राह दिखाओ  भूल गए हैं जो गीता ज्ञान लोग, आप आकर फिर से दोहराओ भटक गए लोगों को सही राह पर लाने का वक्त अब आया है फिर से आ जाओ ना माधव फिर कोई दुष्ट  दुशासन आया है जब जब होती है हानि धर्म की ले अवतार तूं आया है धर्म की स्थापना के लिए, साधुओं की रक्षा के लिए कहो कौन सा रूप तुझे भाया है?? सृष्टि को रचने वाली ही नहीं सुरक्षित अब, मन खौफजदा हो आया है भीष्म मौन सा साधा है जिसने, शर शैया को ही बिछौना बनाया है आहें,बद दुआ,चीख पुकार सुनने से कैसे करोगे माधव इंकार सबको निर्भय...