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Festival of rakhi by sneh premchand

फिर से आई है यह राखी,  फिर मिलने का मौसम आया है।  कितना मधुर, कितना सुंदर  होता भाई का साया है।। फिर पड़ गए बागों में झूले,  शाख शाख पर, पात पात लहराया है।  फिर से आई है यह राखी,  फिर मिलने का मौसम आया है।  नए रिश्तो के नए भंवर में,  बहना तो उलझी उलझी सी है,  पर भाई ना भूले अपने फर्ज को,  वह दिल से पहले जैसी ही है।।  कोई भोर नहीं कोई सांझ नहीं, जब जिक्र पीहर का  जेहन में नहीं आया है।  फिर से आई है यह राखी,  फिर मिलने का मौसम आया है।।  दौर ए मुलाकात होगी तो,  दौर ए गुफ्तगू को भी मिलेगा अंज़ाम। तरोताजा हो जाएंगे नाते, जुदाई को फिर मिल जाएगा विराम।।  खिजा नहीं फिजा का मौसम, अब जर्रे जर्रे में छाया है।  कितना मधुर कितना सुंदर होता भाई का साया है।।  फिर से आई है यह राखी,  फिर मिलने का मौसम आया है।।  कैसे बचपन में रूठते मनाते थे, करते थे कैसे बात बात पर इसरार।  सब भूल, क्यों बन जाते हैं औपचारिक,  प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।।  कच्चे धागे के पक्के बंधन की रिवायत ...