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भोर का भास्कर ((दुआ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

उषा की लाली, प्रकृति की हरियाली, क्या क्या दूं मैं तुझे खिताब?? भोर का भास्कर,फिल्मों का आस्कर, मेरे जीवन की सबसे अनमोल किताब।। बेटी ही नहीं तूं तो है मेरी अहबाब।। क्या है तूं मेरे लिए, मुझे आता नहीं लगाना हिसाब।। मिले जीवन में तुझे खुशियां और सफलता मेरी लाडो, बेहिसाब।।। वांछित मुकाम मिले तुझ को, हो जीवन में तूं कामयाब।। सौ बात की एक बात है, उपहार दुआओं का ही होता है  नायाब।। इतनी सरल,सहज और  फरमाबदार है तूं, मेरे हर प्रश्न का बन जाती है जवाब।।           स्नेह प्रेमचंद

भोर का भास्कर