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वक्त के हाथ से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वक्त के हाथ से फिसल गया लम्हा कोई और बन गई ऐसी दास्तान। यकीन नहीं कर पाएंगी आने वाली पीढ़ियां,ऐसे वजूद से कितना धनवान था ये जहान।। हर हर्फ पड जाता है छोटा, जब करने लगती हूं तेरा बखान। जब भरी भीड़ हो और बस एक नजर आए,यही सच्चे प्रेम की है पहचान।। कई लोग भीड़ का हिस्सा नहीं होते, उनके पीछे भीड़ के होते हैं कदमों के निशान। इस फेरहिस्त में नाम तेरा आता है बहुत ही ऊपर,तूं हमारा गर्व तूं हमारा अभिमान।। *संकल्प से सिद्धि तक* *सफर से मंजिल तक* *उच्चारण से आचरण तक* *सोच से परिणाम तक* का सफर ही तो बनाता है पहचान तूं रुकी नहीं तूं चलती रही, असंख्य हैं तेरे कद्रदान।। क्रम में छोटी पर कर्म में बड़ी सबसे  अधरो पर सजी रही सदा मुस्कान।। अभाव का तुझ पर प्रभाव ना था। गिले शिकवे शिकायत करना तेरा स्वभाव ना था।। खुद मझधार में हो कर भी साहिल का पता बताती थी। बोल मेरी मां जाई तूं इतनी हिम्मत कहां से लाती थी???? नहीं होता यकीन,तूं ही नहीं, लगता है है यहीं कहीं आस पास। ना रुकी कभी ना थकी कभी, महकती रही ज्यों सुमन में सुवास।।