माँ माँ की ममता को तोला है तराजू में, औलाद ने युगों से माँ की दौलत का तो कर लिया बँटवारा। ममता का बँटवारा नही कर पाए,यहाँ मानव इंसानियत से हारा।। युगों युगों से अधिकारों के बँटवारे तो याद हैं, पर भूल जाते हैं अपनी अपनी ज़िम्मेदारी। ये कहाँ, कैसी कमी रह जाती है परवरिश में, क्यों प्रेम की उनके हिया में नही जलती चिंगारी।