*एक ही चमन की होती हैं दोनो डाली* बागबान बेशक अलग हों दोनो के, पर एक ही आंगन में गई होती हैं पाली।। भतीजी का बागबान बुआ के बागबान का ही तो पुष्प है, एक ही महक,एक ही हुनियारा, क्या हुआ अगर अलग है माली।। बहुत गहरा नाता है बुआ भतीजी का, जैसे पर्वों में होती है दीवाली जैसे प्रकृति में होती है हरियाली जैसे सावन में कूके कोयल काली बुआ दादी की ही तो होती है परछाई एक नियत समय पर बेशक उसकी हो जाती है विदाई पर कोई भोर सांझ नहीं ऐसी, जब उसे पीहर की ना हों याद आई।।