ज़रूरत और ख्वाहिश June 20, 2020 ज़रूरत और ख्वाईश एक दिन कुछ ऐसे बतलाई। तुम ज़रूरी या मैं ज़रूरी ख्वाईश ने ऐसी आवाज़ लगाई। ज़रूरत बोली सुन मेरी बहना तुम रहती है धनवानों के यहाँ, मैं तो निर्धन की अमानत हूँ। रोटी कपड़ा और मकान हैं मेरे बच्चे,मैं हर इंसा की ज़रूरत हूँ। Read more