*लेखन का सृजन* उद्दीप्त दिल की अनुभूति और अभिव्यक्ति का ही तो है परिणाम।। जब विचार खलबली सी मचा देते हैं हिवडे़ में, उन्हें अल्फाजों का लेखक पहना देते हैं परिधान।। फिर होता है जन्म किसी ना किसी रचना का, सच में फिर साहित्य हो जाता है धनवान।। साहित्य समाज का दर्पण है, जो देखते,सुनते और महसूस करते हैं लेखनी इन्हीं का ही तो करती है गुणगान।। बस गहन हो अनुभूति और गहन हो अक्षर ज्ञान।। अनुभव और कल्पना शक्ति की हो जाती है जब सगाई, अल्फाज खुद ही भावों का करने लगते हैं बखान।। सहज रूप से,बिन प्रयास के नॉर्मल डिलीवरी हो जाती है भावों की, यही सच्चे लेखन की पहचान।। पूर्वाग्रह और चाटुकारिता से दूर रहे लेखनी, फिर लेखन हो जाएगा आसान।। सत्य की सच्ची सहेली है लेखनी, निधि गुणों की लेखनी महान।। भावों की अभिव्यक्ति सरल है, हो गर निज भाषा का सम्यक ज्ञान।। हिंदी तो फिर है माथे की बिंदी, सरल,सरस,सुबोध यही हमारी हिंदी की पहचान।। जिस भाषा में सोचें,लिखें उसी भाषा में तो, करते हैं हम भावों का सच्चा आह्वान।। फिर दिल की चौखट पर दस्तक दे जाता है वह लेखन, जिक्र,जेहन दोनो में ही बना लेता है अपना स्थान। इस फेरहिस्त...