किसी भी क्रिया की सही प्रतिक्रिया देना भी उतना ही जरूरी है जितना प्रकृति में हरियाली, पर्वों में दीवाली और बागों में कोयल काली।। सही प्रतिक्रिया ना देने वाला व्यक्ति तो कानों के होते हुए बहरा है,आंखों के होते हुए अंधा है और जुबान होते हुए भी गूंगा है।। जब भी विचरण करते हो अपने अंतर्मन के गलियारों में?? क्या आवाज सुनाई नहीं देती अंतरात्मा की, क्यों खो जाते हो दर ओ दीवारों में????? सही को सही गलत को गलत कहते हुए क्यों लड़खड़ा जाती है जुबान??? क्यों जीते जी ही, सोने चला जाता है स्वाभिमान।। सूई की नोक के बराबर भी जगह भाइयों को न देने वाले दुर्योधन का देखा था ना मान आज भी भुला नहीं पाया इतिहास उसको,दौलत नहीं अच्छे लोग ही होते हैं हमारी शान।। घर की बेटी तो रूह है घर की, देखो कहीं आहत ना हो उसका सम्मान। कुछ लेने नहीं आती है वो पीहर, वो तो ईश्वर का हैं वरदान।। भाई बहनों के चमन का एक ही तो होता है बागबान।। इतना भी ना खोए अपनी ही दुनिया में भाई,आए ही ना नजर उसे बहन का जहान।। तुम उसे क्या दोगे वो तो अपना हिस्सा भी तुम्हे बिन मांगे दे देती है। फलता फूलता रहे उसके...