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क्रिया की प्रतिक्रिया(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

किसी भी क्रिया की सही प्रतिक्रिया देना भी उतना ही जरूरी है  जितना प्रकृति में हरियाली, पर्वों में दीवाली  और बागों में कोयल काली।। सही प्रतिक्रिया ना देने वाला व्यक्ति तो कानों के होते हुए बहरा है,आंखों के होते हुए अंधा है और जुबान होते हुए भी गूंगा है।। जब भी विचरण करते हो  अपने अंतर्मन के गलियारों में?? क्या आवाज सुनाई नहीं देती अंतरात्मा की, क्यों  खो जाते हो दर ओ दीवारों में????? सही को सही गलत को गलत कहते हुए क्यों लड़खड़ा जाती है जुबान??? क्यों जीते जी ही, सोने चला जाता है स्वाभिमान।। सूई की नोक के बराबर भी जगह भाइयों को न देने वाले दुर्योधन का देखा था ना मान आज भी भुला नहीं पाया इतिहास उसको,दौलत नहीं अच्छे लोग ही होते हैं हमारी शान।। घर की बेटी तो रूह है घर की, देखो कहीं आहत ना हो उसका सम्मान। कुछ लेने नहीं आती है वो पीहर, वो तो ईश्वर का हैं वरदान।। भाई बहनों के चमन का एक ही तो होता है बागबान।। इतना भी ना खोए अपनी ही दुनिया में भाई,आए ही ना नजर उसे बहन का जहान।। तुम उसे क्या दोगे वो तो अपना हिस्सा भी तुम्हे बिन मांगे दे देती है। फलता फूलता रहे उसके...

ज़रूरी है

ज़रूरी है,ज़रूरी है जब हम कुछ अच्छा करें,तो उसकी सराहना जरूरी है,कुछ गलत करें,तो उसकी आलोचना ज़रूरी है,अहसासों की सही समय पर अभिव्यक्ति ज़रूरी है,रिश्तों के पौधों को मुलाकातों के जल,मधुर वाणी की वायु से सींचना ज़रूरी है,हर ह्रदय में संवेदना ज़रूरी है,मैं के स्थान पर हम का भाव ज़रूरी है,ये सब ज़रूरी है, मानो चाहे न मानो।।

हर पल जीना ज़रूरी है

करुणा जरूरी है

सोच में परिवर्तन

ज़रूरी है

सही समय पर सही चीजों का अहसास ज़रूरी है। सही क्रिया की सही प्रतिक्रिया ज़रूरी है। उंगली पकड़ कर चलाने वालों के बूढ़े कंपकंपाते हाथ थमाने ज़रूरी हैं। प्राथमिकताएं सेट करनी ज़रूरी हैं। गलत को गलत कहना औऱ मानना ज़रूरी है। अपने विवेक से काम लेते हुए अपने दिमाग का रिमोट अपने हाथ मे रखना ज़रुरी है। अब तुलसीदास बनना है या श्रवण कुमार,इस विकल्प में से सही चयन ज़रूरी है। और अधिक नही आता कहना,मा बाप का ध्यान रखना ज़रूरी है। वास्तव में यही मदर्स औऱ फादर्स डे है।

खुद से बात करना

SUVICHAR.........Khud se bat kerna bahut zruri h Khud se mulakat kerna bahut zruri h Khud se sach bolna bahut zruri h khud ki khud se mulakat hi nhi ho pati puri zindgi yun hi chli jati h oron ko kya janeinge ham jab khud ko hi nhi jante apni kamiyon ko dur nhi kerte kutarkon ka shara lete rehte h