बिटिया की मां होने से,मुझे डर लगता है, साँझ ढ़ले,वो घर न लौटे,मुझे डर लगता है, फ़ोन करूँ और न उठाए,मुझे डर लगता है, कहीं पर जाए और घर न आए, डर लगता है मेरे इस डर को दूर करने की,मुझे निर्भय बनाने की जन,गण, मन सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है,प्रजा और तंत्र की ज़िम्मेदारी है।।