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प्रेम कपाट

मैं प्रेम कपाट रखूंगी खोल कर((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मैं प्रेम कपाट रखूंगी खोल कर, तुम बिन दस्तक के आ जाना।। यूं मत आना कि आना चाहिए था,  जब दिल में उठे हिलोर, तभी मेरे शहर का टिकट कटाना।।  मैं प्रेम कपाट रखूंगी खोलकर,  तुम बिन दस्तक के आ जाना।  कितनी है किसी रिश्ते में गहराई,  नहीं बना इसे मापने का आज तलक कोई पैमाना।  पर इतना तो है एहसास मुझे,  तू मेरे जीवन का अनमोल खजाना।। इस खजाने को मैं रखूंगी संभाल कर, तुम बेधड़क इसे लेने आ जाना। यूं मत आना कि आना चाहिए था,  जब दिल में उठे जज्बात,  तभी मेरे शहर का टिकट कटाना।। सोच कर बोलना,बोल कर मत सोचना, बाज़ औकात, चंद अल्फाज ही हमे बना देते हैं बेगाना।। दे प्रेम जब दस्तक, तेरी चौखट पर जब, कपाट खोलने से मत हिचकिचाना । यह जिंदगी है,इस जिंदगी में सबका अलग अलग है तराना ।। नहीं रहना यहां सदा के लिए पीहर छोड़ 1 दिन तो ससुराल पड़ता है जाना।। स्नेह प्रेमचंद