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Showing posts with the label भव सागर से पार लगाना है।।

तमस से आलोक की ओर poem by snehpremchand

तमस से आलोक की ओर अधर्म से धर्म की ओर असत्य से सत्य की ओर रजनी से भोर की ओर अवसाद से उल्लास की ओर संशय से विश्वास की ओर ख्वाब से हकीकत की ओर बेचैनी से सहजता की ओर जड़ से चेतन की ओर भटकाव से मन्ज़िल की ओर विषाद से जिजीविषा की ओर अकर्मण्यता से कर्मठता की ओर चिंता से चितन की ओर प्रतिशोध से क्षमा की ओर अज्ञान से ज्ञान की ओर वेदना से मरहम की ओर अहम से वयम की ओर सवः से सर्वे की ओर स्वार्थ से परमार्थ की ओर संचय से अपरिग्रह की ओर हिंसा से अहिंसा की ओर भौतिकता से प्रकृति की ओर नास्तिकता से आस्तिकता की ओर घृणा से प्रेम की ओर निष्ठुरता से करुणा की ओर विषमता से समता की ओर दुर्भावना से सद्भावना की ओर पाप से पुण्य की ओर मोह से त्याग की ओर पराजय से विजय की ओर ह्रास से विकास की ओर हठधर्मिता से विनम्रता की ओर क्रंदन से वंदन की ओर बंजर से उर्वर की ओर साम्प्रदायिकता से धर्म निरपेक्षता की ओर निरक्षरता से साक्षरता की ओर अराजकता से शांति सौहार्द की ओर हे माधव ! आज आप को ही तो लेकर जाना है। आज जीवन के कुरुक्षेत्र में विचलित हो रहे हैं जा...