प्रेम के कारण ही राम ने शबरी के झूठे बेर खाये थे। प्रेम के कारण ही गोविंद ने सुदामा का पोहा खाया था। प्रेम के कारण ही मोहन ने विदुर के घर भाजी खाई थी। ढाई अक्षर प्रेम के पढे सो पंडित होय। प्रेम प्रेम कर रे मना, प्रेम से बढ़ कर न कोय।। स्नेह प्रेमचंद
जैसे ही कोई भी भाव जेहन की चौखट पर दस्तक दे,झट से अल्फ़ाज़ों का पहना देती हूं परिधान। जाने कब किस भाव का झोंका आ कर पल भर में चला जाए, हो बेहतर हम रहें सावधान।। स्नेहप्रेमचन्द
न सरहद,न सीमा,न अंत कोई लेखन का, असीम ब्रह्मांड सा इसका विस्तार। जितनी होती ज़िन्दगी की महक सूंघने की शक्ति बढ़ता रहता उतना ही इसका आकार। जितना गहरा जाओगे,भावों के मोती अल्फ़ाज़ों के हाथों से,बन्धु खोज कर लाओगे।।