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मलाल और दुख

मलाल ने एक दिन कहा दुःख से,मुझ में और तुझ में क्या भेद है,आज मुझे तुम ये बतलाओ,क्यों समझ नही पाते लोग अंतर हमारा,आज मुझे ये अंतर समझाओ,दुःख ने कहा,सुनो बंधु, खो देते हैं जब हम अपनी कोई नायाब सी चीज,तब लोगों को मेरी अनुभूति होती है,मोह है कारण मेरा,ज्ञान की कमी यहां पर होती है,अब तुम दो मुझे परिचय अपना,बताओ क्या मतलब होता है मलाल का,क्यों पछतावे की गंध तुझ में होती है,मलाल से भर कर जब बोला मलाल तो दुःख को मायने मलाल के समझ में आ गए,क्यों मलाल है मलाल, क्यों दुःख के बादल उसपर छा गये,मेरा परिचय है काश,काश मैं यह कर लेता,काश में वो कर लेता, काश मैं दो मीठे बोल बोल लेता,आत्ममंथन होता है जब जन्म मेरा हो जाता है,मेरे जन्म की देरी के कारण इंसा चैन नही  पाता है,मेरा परिचय है,कर सकता था,पर किया नही,मेरा स्वरूप बड़ा विचित्र है,काश मैं समय,समर्पण ,धन से मदद कर देता,यह हूँ मैं, मैं ताउम्र नही मिट पाता, व्यक्ति के  साथ ताउम्र रहता हूँ,यही मेरी सज़ा है,दुःख तुम्हे कम किया जा सकता है,पर मुझे नही।।

संस्कार

मोह और प्रेम

भेद thought by sneh प्रेमचन्द

उच्चारण और आचरण में  जिसके भेद न था। वो तो करती थी पहले,कहती थी बाद में, उसके कर्म की थाली में,  निष्क्रियता का कोई छेद न था।।      स्नेह प्रेमचन्द